प्राचीनकाल के योगियों ने जागतिक सत्व के सहारे कौशलपूर्वक परमतत्व को समझाने की चेष्टा की है। उन लोगों का कहना है – जिसे हम लोग व्यवहार मुख से शिव कहते हैं, वह भी वास्तव में शक्ति का एक पृष्ठ है क्योंकि जो वास्तव में शिव है, उन्हें भी शक्ति के अभाव में किसी प्रकार से षिव नहीं कहा जा सकता, उनके बारे में किसी प्रकार का वर्णन सम्भव नहीं है।
भगवत्पाद के घराने में परम्परागत सांबशिव उपासना चली आती थी। उनके श्रृंगेरी आदि मठों में शिव व शारदादि की शक्ति उपासना आज भी प्रचलित है। शिव से निर्गुण परमतत्व प्राप्ति का ज्ञानमार्ग और शक्ति से शुद्धविद्या की उपासना समझना चाहिये। कांची मठ में श्रीचक्र की तांत्रिक उपासना समयाचार पद्धति से आज भी होती है, जहां भगवत्पाद का विद्यार्थीकालीन कुल था। ‘सौन्दर्यलहरी’ के 11वें श्लोक में श्रीचक्र का वर्णन है। श्रीचक्र रेखागणित के प्रमाण से दैवी शक्तियों का एक प्रतीक स्वरूप यंत्र बनाया गया है। भौतिक यंत्रों के सदृष यह भी अध्यात्म विज्ञान के विद्वानों की आध्यात्मिक खोज का फल है, जिसके द्वारा मनुष्य जीवन को अध्यात्म शक्ति की उपलब्धि करके सार्थक किया जा सकता है।
श्रीचक्र की उपास्य देवता श्री ललिता त्रिपुरा हैं। मंत्र के मनन द्वारा मन का तत्सम्बन्धी देवता से तादात्म्य किया जाता है। श्री ललिता त्रिपुराम्बा के मंत्र का निर्देश सौन्दर्यलहरी के श्लोक 32 व 33 में है, जिसका विशेष रहस्य श्री भास्कर राय के वरिवस्या नामक ग्रंथ से जाना जा सकता है।