भक्ति-साधन मार्ग (द्विएकात्मकता मार्ग)

स्वामी जी का मन प्रारम्भ से ही दयालुता से आपूरित रहा है और इसी कारण समाज में फैली हुई विसंगतियों को देखकर और समाज में विभिन्न प्रकार के कष्ट और दुखों को देखकर उनका मन करूणा से भर उठता था और निरन्तर आंसुओं की झड़ी बहने लगती थी।  जिस प्रकार महात्मा बुद्ध ने समाज में मनुष्य के अलग-अलग आयु के चरणों को देखकर वैराग्य से युक्त होकर परम से एकरूप होने के लिए एक नये मध्यम मार्ग की रचना की, उसी प्रकार स्वामी जी ने भी साधकों के लिए एक साधारण भक्ति और साधना से युक्त एक नये मध्यम मार्ग की खोज की जिसका नाम ‘‘भक्ति-साधन मार्ग‘‘ रखा गया है।  इस मार्ग पर चलकर साधारण व्यक्ति भी अपने जीवन के अभावों को दूर कर सकने में सक्षम हो सके, इसी बात को ध्यान में रखते हुए स्वामी जी द्वारा ‘‘द सुप्रीम‘‘ की स्थापना की गई और आज भी स्वामी जी द्वारा समाज कल्याण हेतु इस साधना की यात्रा अविरल रूप से जारी है।

द सुप्रीम

        ‘‘द सुप्रीम‘‘ उसी परम सत्ता का नाम है जो सर्वदा इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त है, उसी दिव्य ऊर्जा का नाम है जो स्वयं में ही अलौकिक धारा के रूप में समग्र ब्रह्माण्ड को समाहित किये हुए है।  परम ही ‘‘द सुप्रीम‘‘ है।  इसलिए ‘‘द सुप्रीम‘‘ अन्य कुछ नहीं अपितु ईश्वर के द्वारा सुझाये गये ‘भक्ति-साधन मार्ग’ के लिए लोगों को जागृत करना और मार्गदर्शन देने का ही भाव है और ईश्वर का होने के कारण यह स्वयं का न होकर उन्हीं का होने के कारण ‘तेरा तुझको अर्पण’ का ही भाव है और इसी भाव का अस्तित्व हुआ ‘‘द सुप्रीम‘‘।

        ‘‘द सुप्रीम‘‘ स्वामी जी द्वारा चलाया जा रहा एक आध्यात्मिक अन्वेषण अभियान है जिसमें स्वामी जी के निर्देशानुसार नित्य नये-नये प्रयोग करके साधना एवं नवीन पूजा पद्धतियों को अस्तित्व में लाया जा रहा है और इसके अतिरिक्त स्वामी जी द्वारा खोजे गये नये मध्यम मार्ग जिसे ‘भक्ति-साधन मार्ग’कहा जाता है उसके अनुसार श्रीविद्या की दैनिक सरल पूजन विधि पर अन्वेषण करके साधकों का मार्गदर्शन करना है।

        इसके अतिरिक्त अन्य उद्देष्य साधकों एवं जिज्ञासुओं को उचित मूल्य पर दैनिक साधनोपयोगी सामग्री को भी पूर्णरूपेण प्राणप्रतिष्ठा एवं मंत्रसिद्ध करके उपलब्ध करवाना है।  आज संक्रमण का युग चल रहा है और बाजार में व्यवसायलोलुपता के कारण कोई भी असली सामग्री प्राप्त नहीं होती है। साधकों की अकांक्षा यदि रूद्राक्ष की है तो उन्हें भद्राक्ष मिल रहे हैं और स्फटिक के आकांक्षी साधक को काँच परोसा जा रहा है।  सियारसिंगी और हाथाजोड़ी के विषय में तो बात ही मत करो कि क्या दिया जा रहा है।  इसके अतिरिक्त यह सारी सामग्री नकली ही नहीं है वरन् प्राणहीन भी है क्योंकि इसकी कोई प्राणप्रतिष्ठा इत्यादि तो है ही नहीं।  इन सभी चीजों को देखते हुए स्वामी जी द्वारा ‘‘द सुप्रीम‘‘ अभियान को चलाया गया जिसके अन्तर्गत पूर्णरूपेण असली सामग्री जो कि साधक के नाम एवं गोत्र के साथ प्राणप्रतिष्ठित की जाती है, स्वामी जी के निर्देशानुसार प्रदान की जाती है।

        ‘‘द सुप्रीम‘‘ द्वारा निकट भविष्य में कई प्रकार के प्रकल्प जिसमें एक नवग्रह वाटिका का भी निर्माण करने का विचार है जिससे कि ग्रहबाधा से ग्रसित लोगों को उच्चकोटि के आवासीय शिविर प्रदान किए जायेंगें जिससे कि साधक अपने परिजनों को साथ जीवन को उर्ध्वमुखी कर सके।