मणिद्वीप

करोड़ों सूर्य, चन्द्रमा, विद्युत् और अग्नि-वे सब इस मणिद्वीप की प्रभा के करोड़वें अंश के करोड़वें अंश के बराबर नहीं हैं।  वहाँ कहीं पर मॅूंगे के समान प्रकाश फैल रहा है, कहीं मरकतमणि की छवि छिटक रही है, कहीं विद्युत् तथा भानुसदृष तेज विद्यमान है, कहीं मध्याह्नकालीन सूर्य के समान प्रचण्ड तेज फैला हुआ है और कहीं करोड़ों बिजलियों की महान् धाराओं की दिव्य कान्ति व्याप्त है।  कहीं सिन्दूर, नीलेन्द्रमणि और माणिक्य के समान छवि विद्यमान है।  कुछ दिशाओं का भाग हीरा-मोती की रश्मियों से प्रकाशित हो रहा है, वह कान्ति में दावानल तथा तपाये हुए सुवर्ण के समान प्रतीत हो रहा है।  कहीं-कहीं चन्द्रकान्तमणि और सूर्यकान्तमणि से बने स्थान हैं।

इस मणिद्वीप का शिखर रत्नमय तथा इसके प्राकार और गोपुर भी रत्ननिर्मित हैं।  यह रत्नमय पत्रों, फलों तथा वृक्षों से पूर्णतः मण्डित है।यह पुरी मयूरसमूहों के नृत्यों, कबूतरों की बोलियों और कोयलों की काकली तथा शुकों की मधुर ध्वनियों से सुशोभित रहती है।यह सुरम्य तथा रमणीय जल वाले लाखों सरोवरों से घिरा हुआ है।  इस मणिद्वीप का मध्यभाग विकसित रत्नमय कमलों से सुशोभित है।उसके चारों ओर सौ योजन तक का क्षेत्र उत्तम गन्धों से सर्वदा सुवासित रहता है।  मन्द गति से प्रवाहित वायु के द्वारा हिलाये गये वृक्षों से यह व्याप्त रहता है।चिन्तामणि के समूहों की ज्योति से वहाँ का विस्तृत आकाश सदा प्रकाशित रहता है और रत्नों की प्रभा से सभी दिशाएँ प्रज्जवलित रहती हैं।वृक्षसमूहों की मधुर सुगन्धों से सुपूरित वायु वहाँ सदा बहती रहती है।  हे राजन्। दस हजार योजन तक प्रकाशमान वह मणिद्वीप सदा सुगन्धित धूप से सुवासित रहता है।

रत्नमयी जालियों के छिद्रों से निकलने वाली चपल किरणों की कान्ति तथा दर्पण से युक्त यह मणिद्वीप दिशाभ्रम उत्पन्न कर देने वाला है।हे राजन्! समग्र ऐश्वर्य, सम्पूर्ण श्रृंगार, समस्त सर्वज्ञता, समग्र तेज, अखिल पराक्रम, समस्त उत्तम गुण और समग्र दया की इस मणिद्वीप में अन्तिम सीमा है।एक राजा के आनन्द से लेकर ब्रह्मलोकपर्यन्त जो-जो आनन्द हो सकते हैं, वे सब इस मणिद्वीप के आनन्द में अन्तर्निहित हैं।हे राजन्! इस प्रकार मैंनें आपसे अति महनीय मणिद्वीप का वर्णन कर दिया।  महादेवी का यह परम धाम सम्पूर्ण उत्तम लोकों से भी उत्तम है।इस मणिद्वीप के स्मरणमात्र से सम्पूर्ण पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं और मृत्युकाल में इसका स्मरण हो जाने पर प्राणी उसी पुरी को प्राप्त हो जाता है।